मन - एक भ्रम-छाया

पेड की छाया के लिए

सूर्य और धरती

दोनों का होना जरूरी है

परन्तु यह छाया न तो

सूर्य ने पैदा की और न ही

धरती इसकी मालिक है

यह छाया न तो सूर्य को जानती है

और न ही धरती और पेड से इसका कोई लगाव है

यह स्वयं के प्रति भी पूरी तरह उदासीन है

ऐसी ही एक छाया है

आदमी का मन

परन्तु यह मन (भ्रम- छाया) अपने होने का

दावा ही नहीं करता बल्कि

अपने शरीर (धरती) और परिवेश( सूर्य)

दोनों पर अपनी सत्ता स्थापित करता है

................................................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
वाह!! क्या खूब!

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