गुरु के बाबत

गुरु प्रकाश ही गुरु प्रसाद
गुरु वह नही जो हाँथ पकड़कर
रास्तों पे चलाये
गुरु ऐसा प्रकाश है
जिस प्रकाश में शिष्य अपना
रास्ता ढूंढ लेता है
............................... अरुण
जहाँ शिष्य वहाँ गुरु
जगत में भांति भांति के गुरु
उपलब्ध हैं
जिसे जैसा चाहिए वैसा मिल जाता है
या यूँ कहें कि शिष्य जैसा हो वैसे ही गुरु की
उसे जरूरत होती है,
वैसा ही गुरु उसे भाता है
नीचे धरातल के शिष्य को नीचे धरातल का
ऊँचे धरातल वाले शिष्य को उसकी जरूरत का,
जरूरत शिष्य के धरातल (समझ) के ऊँचे उठने की है
गुरु का धरातल क्या है
यह चिंता का विषय नही
.................................................. अरुण
गुरु हर क्षण मिलतें हैं
जीवन में सीखने के अवसर
क्षण प्रति क्षण जीवंत हैं
जिसे दिखतें हैं वे उनसे सीख लेते हैं
जिसे नही दिखते वे उन्हें ढूँढते रहते हैं
बरसते पानी को चुल्लू से पकड़ा जा सकता है
पर कुछ लोग बादल ढूँढने में जुटे हैं
गुरु को ढूंढना नही है
शिष्यत्व जगाना है
........................... अरुण

Comments

अपने मनोभावो को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

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