इधर से सुखकर तो उधर से दुखदायी

सुख की आकांक्षा में दुःख का भय है
दुःख की अनुभूति में सुख का चिंतन
एक ही अनुभूति -
इधर से सुखकर दिखे तो
उधर से दुखदायी
क्यों न ऐसी जगह से देखें
यह सारा तमाशा
जहाँ न हो कोई आशा और
न कोई निराशा
............................ अरुण

Comments

Unknown said…
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि...दार्शनिक अन्दाज में जीवन जीने का नजरिया बताती सशक्त व सार्थक कविता...बधाई।
सशक्त व सार्थक कविता...बधाई।
दिलीप said…
wahi baat hai sir upar se dekho to clockwise hai neeche sedekho anticlockwise...

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