आइंस्टीन का टाइमस्पेस और मन

आइंस्टीन का टाइमस्पेस

मन को भी लागू है

अस्तित्व है एक का एक

कहीं भी न भेद, न अन्तर,

न अवकाश न दिशा और न ही आकार

बुद्धि ने अपनी सहुलियत के लिए

आरम्भ और अंत की कल्पना की और

इन दो काल्पनिक स्थल- बिंदुओं के बीच का अंतर

नापना चाहा और ऐसा करते

काल का ख्याल पैदा हुआ

मन के भीतर भी अंतर, आकार, दिशा की

अवधारणा होने से

मनोवैज्ञनिक काल या टाइम

प्रकट हुआ जान पड़ता है

.......................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया.

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