असीम बना ससीम

पैदा हुआ और इस धरती पर आया
तब था असीम
न था मेरा कोई नाम, कोई परिचय
और न कोई पता
सारी जमीन, सारा सागर, सारा आसमान
मेरा अपना था
पर आज
एक छोटे से घर, नाम, और परिचय का
मै मोहताज हूँ
............................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
मुहताज...मोहताज..

बढ़िया!
प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Popular posts from this blog

लहरें समन्दर की, लहरें मन की

जो जैसा है वैसा ही देखना

तीन पोस्टस्