दूसरों की पर-निर्भरता में रस लेता आदमी
आम तौर पर एक बात देखने को मिलती है. देखा जाता है कि एक आदमी सामनेवाले अपने किसी मित्र या परिचित को कोई कूट प्रश्न या पहेली हल करने को देता है, फिर यह देखने मे रस लेता है कि कैसे वह उसे हल नहीं कर पा रहा या उसे कितनी माथापच्ची करनी पड़ रही है. मित्र को पहेली का हल मिलने जा रहा है, अगर ऐसा दिख जाए, तो प्रश्नकर्ता तुरंत हस्तक्षेप कर उसे रोकते हुए, खुद ही प्रश्न का हल बता देता है. अगर हल ढूँढता हुआ मित्र हल न ढूँढ पाए तो कितना ही अच्छा हो, ऐसा सोचकर वह मन ही मन खुश होता दिखता है.
......................................................................................................................... अरुण
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मेरे एक सवाल का जबाब दिजीए। जब आपने अपने मन को पूर्ण शांत कर लिया होता है, आप न भूतकालमें जाते है न भविष्य की कोई चिंता आपको सताती है; जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार कर लेनेमें आपको कोई दिक्कत महसूस नही होती; चित्तकी सभी प्रेरणाओंको जिसमे जिज्ञासा और अन्य मस्तिष्कों को सिखाने की लालसा भी शामिल है, आपने जीत लिया होता है; तो फिर इस ब्लॉगिंग का चस्का आपको कैसे लगा।