दृष्टिमय बोध
संसार की हर वस्तु, तथ्य, दृश्य, या प्रक्रिया
का वर्णन किया जा सकता है
परन्तु हर वर्णन के बाद भी
कुछ अवर्णित (unexplained) शेष बचता ही है
और इसीलिए कहते हैं कि
वर्णन हमेशा अधूरा है
अतः जरूरत है इस अधूरेपन को भी देख सके
उस दृष्टि की,
केवल वर्णन की नही
........
वर्णन करना काम है विज्ञान का
अधूरे के साथ साथ पूरे को
देख सकना काम है
दृष्टिमय बोध का
इस दृष्टिमय बोध के अभाव के कारण ही
सदियों से सच समझाना जारी है और
कभी भी पूरा नही हो पा रहा
......................................... अरुण
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