दुहराता वही शेर
अपनी ही हर खुशी से परेशां हैं सारे लोग
किसको खुशी कहें , हर दिल में हो तलाश
अँधेरा काट लेगा, डर के न भागो यारों
इसी जगह पे छुपा है, रौशनी का चिराग
सवाल उठने से पहले जबाब हाजिर हो
ऐसे माहोल में नयी सोच नही बन पाती
जहाँ खिला है फूल खुश है जिंदगी पाकर
पिरोके माला में मौत उसे मत देना
महलों को गरीबी में सादगी दिखती
गरीबी में ख्वाब उठते हैं महलों के
अँधेरा–ओ-उजाला, बेखुदी-ओ-होशियारी
दोनों ने नही देखा एक-दूजे को
................................................. अरुण
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