एक निर्बोझ जीवन-प्रवाह

ठीक से देखना बने तो

दिखे कि बाहर,

पेड की छाया बनती है,

बनायीं नही जाती

पेड उगता है,

उगाया नही जाता

धरती चलती है,

चलाई नही जाती

ऐसे ही भीतर,

साँस चलती है चलाई नही जाती

धडकन चलती है चलाई नही जाती

विचार भी चलते हैं, चलाए नही जाते

चलानेवाले के बिना ही सबकुछ चल रहा है

चलानेवाला है ही नही

और सब हो रहा है

इस सच्चाई से जुडी जीवन्तता

ही है एक निर्बोझ जीवन-प्रवाह

..................................... अरुण


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