अपने प्रिय मित्र को जबाब में लिखी पंक्तियाँ



मित्र ने सलाह दी थी – “अच्छा लिखते हो, रचनाओं को प्रकशित कर लोगों के सामने क्यों नहीं लाते ?”. शायद उसकी यह धारणा हो चुकी है कि मुझमें प्रसिद्धी की चाह नही है... मैने अपनी अजीबोगरीब उलझन को सामने रखने की कोशिश की है.

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मशहूर होने की नही ख्वाहिश कहूँ
तो झूठ कहता हूँ,
लिख्खा मेरा पढ़ ले कोई
यह चाहकर मै ब्लॉग लिखता हूँ
क्योंकि यही सबसे सरल तरीका है
अपने को प्रकाशित करने का
और जो अन्य जरिये हैं उनके प्रति उदासीनता है,
क्यों है ?
शायद मेरी ही कुछ अंदरूनी कमजोरियां
या  कन्फ्यूजन जिम्मेदार हैं ...

मेरा दूसरा गंभीर दोष यह है कि –
..... होती नही इच्छा पढूं मै
दूसरों ने क्या लिखा है जबकि
दूसरों के पास है साहित्य प्रतिभा और
उन्होंने बहुत अच्छा लिख्खा है  
  
उनके भी हैं कई विषय, कई विचार हैं,
उनकी भी प्रभावी-अभिव्यक्तियाँ है,
उनकी हैं अपेक्षाएं निश्चित कि
उनको पढ़ा जाए और उन्हें अभिप्राय मिलें ......
परन्तु ....
यह सब अच्छी तरह जानते हुए भी
मै केवल अपनी सोच और अपनी कलम
इन दोनों के साथ ही अपने को जोड़े हुए हूँ.

मेरी यह अक्षम्य मनोवृत्ति
मुझे मुख्य प्रवाह से जुड़ने न देगी,
इसका भी मुझे एहसास है...

इसी उम्मीद से अपनी इन कमजोरियों को
नजरंदाज कर रह हूँ कि

.... आएगा एक दिन ऐसा भी
जब लिखने की वृत्ति
और अभिव्यक्ति का आग्रह थम जाएगा और
शेष बचेगा शुद्ध नज़रों से देखते रहना
सारा नजारा, पढ़ते-सुनते रहना दूसरों की
कला-अभिव्यक्तियों को दृदय की गहराइयों से  
-अरुण

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