ये वक्त क्या है ?...... जावेद साहब
कल जावेद साहब की
ख़ूबसूरत कविता
‘वक्त’ You tube
पर सुनी.
कविता में वक्त की
हकीकत को
‘तजुर्बी’ एहसास स्पर्शाकर,
बहुत ही उम्दा ढंग
से उजागार किया गया है,
इस बहाने मुझे
मेरा एक दोहा याद आ गया.
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स्मृति की पट्टी
थामकर नापत मन में काल
ध्यान धरा पट्टी
गिरी, समय-शून्य है काल
-अरुण
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जबतक स्मृति से
बोझल मन
अवकाश को स्मृति
पट्टी से
माप रहा है, वक्त
का भरम
जिंदा ही रहेगा
मन से हटकर ध्यान
में उतरी
चेतना ही वक्त की हकीकत
यानि वक्त की शून्यता
को समझ सकती है
-अरुण
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