जीवंत साधना



निराकारका स्मरण रख जो देखे साकार
सब में दिखता ईश ही, हो कोई आकार
- अरुण
यह दोहा जीवंत साधना
करने वाले का अनुभव है,
ऐसा साधक जो भी प्रकट है,
उसके भीतर के अप्रकट तत्व को ही
पहले स्मरता हुआ प्रकट रूप को निहारता है,
और इसकारण उसके चित्त से सारे भेदाभेद
ओझल हो जाते हैं
-अरुण     

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