तर्क तभी सही, जब अंधे न हों



तर्क –चाप पर बाण जो, जाता तभी सटीक
आँखे जब हो जागती और लक्ष्य पर टीक
-अरुण
चाप से बाण निकलकर तभी
लक्ष्य पर सटीक पहुंचता है जब
लक्ष्य पर आंखे ठीक से जमी हों,
वास्तविक जीवन के लक्ष्य
हमेशा चलायमान होते हैं,
किसी एक जगह स्थिर नही और
न ही लक्ष्य साधने वाला कहीं स्थिर है.
तर्क भी बाणों की तरह होते हैं
पर उन्हें अक्सर आँखें बंद रखकर
(वास्तविकता को भुलाकर)
ही इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसे अंधे तर्क
किसी भी बहस को जीत लेते हैं
पर जीवन के उत्तर
सही सही ढूंढ नही पाते
-अरुण   

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के