बंधन ही प्रीतिकर फिर ? ......



जिस घर में हम कैद हों गर उससे हो प्रीत
कौन करे आज़ाद फिर, बचे न कोई रीत

संसार,
मायामोह के जाल में उलझा हुआ
जीवन है. जब तक
उलझन से प्रेम है, लगाव है,  
सुलझन की कोई संभावना ही नहीं बनती
-अरुण  

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