अकर्ता हो जाना ही शांति है



कुछ करते होती ध्वनी, ‘करना’ सदा अशांत
जो करता मन शांत वह, कैसे होवे शांत?

मन को शांत करने के
प्रयास भी
अशांति के ही जनक हैं,
जहाँ ‘करने’ का ख्याल आया
मन की बेचैनी बढ़ी,
सम्पूर्ण जागरण में जब
करने वाला ही ओझल हो जाता ही
शांतता लौट आती है
-अरुण  
  

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