अगला चुनाव - कई प्रश्न अनायास सामने आ रहे हैं
२०१४ का आम चुनाव वक्त से पहले होगा या ठीक वक्त पर इस बाबत की अटकलों का बाजार
गर्म हो चुका है. दोनों प्रमुख पार्टियों ने ताल ठोकाना और अपनी जीत के दावे करना
शुरू कर दिया है. जनता के बीच अपने पक्ष में उबाल लाने और हवा बनाने की कोशिशें अब
रंग ला रही हैं. टीवी चैनलों की बहसों में ‘तू तू मै मै’ या ‘तेरी कमीज से मेरी कमीज
अधिक सफ़ेद’ जैसे तर्क अब तूल पकड़ने लगें हैं. इन चैनलों ने धीरे धीरे भविष्य
बतानेवाले -सर्वों का सिलसिला शुरू कर दिया है.
आम जनता में भी अब चुनावी सुगबुगाहट शुरू होने को है. ऐसे में कई प्रश्न अनायास
सामने आ रहे हैं.
- क्या जनता इस बार भी बिखरकर वोट देगी या किसी एक पार्टी या चुनावी फ्रंट पर अपने वोटों को फोकस करेगी ?
- बीते चार सालों में जनता ने जिन मुद्दों को और समस्याओं को सुना,बोला और उछाला या आंदोलित किया क्या वे सब नतीजों में प्रतिबिंबित होंगे या केवल चुनाव के समय रचे गए तीखे जन- विभाजन (polarization) ही बाजी मार जाएँगे?
- चुनावी उमीदवारों में क्या पहले से जाने गए नेताओं का ही समावेश होगा या नये चेहरें बड़ी तादाद में उभर कर सामने आएँगे?
- गुजरात की बहुसंख्य जनता जिसतरह किसी ‘एकमात्र नेतृत्व’ के पीछे खडी हुई दिखती है, क्या सम्पूर्ण भारत की जनता भी उस या ऐसे ही किसी अन्य ‘एकमात्र नेतृत्व’ को खुलकर समर्थन दे पाएगी?
- अल्प-संख्यकों को चुचकारना या बहुसंख्यकों की अस्मिता को जगाना – इन दो टेक्निक्स का उपयोग क्या इस बार के चुनाव में बड़े पैमाने पर होगा ?
- सोशल-मीडिया जैसा नया औजार क्या और कितना गुल खिलाएगा ?- यह भी देखने वाली बात होगी
- सरकार तो बनेगी ही – किसी की भी हो – सवाल यह है कि क्या नई सरकार पुराने प्रस्थापित ढंग से ही काम करेगी या उसकी सोच और कृति में कोई नया सकारात्मक परिवर्तन होगा?
- क्या जनता सही माने में भ्रष्टाचार जैसी अनेक बुराइयों से लड़ेगी या भ्रष्टाचारियों या ऐसे ही अन्य कुकर्मियों को सजा दिलवाने में ही रस लेती रहेगी?
ऐसे ही अनेक प्रश्न हैं ..........
-अरुण
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