कुछ और नही ...



जब जब भी देखा सागर को
बस लहर दिखी, कुछ और नही
शब्दों का सागर ‘लहर’ मिटे
सागर देखा, कुछ और नही
-अरुण
टुकड़ों को देखो तो पूर्ण दिखाई नही देता.
शब्द पूर्ण के लिए भी और अंश के लिए भी होते हैं,
शब्दों का ज्ञान अंश पर नजर स्थिर कर देता है
और इसतरह देखने (perspective) के अंदाज को ही
बदल देता हैं परिणामतः  मनुष्य का बोध-चित्त भ्रमित हो जाता है.
-अरुण  

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