सत्य का स्पर्श स्वयं द्वारा ही



दुजा न देगा स्पर्श तुझ, ना करता उद्धार
ग्रन्थ, गुरु सब छोर तक, खुद ही होना पार
-अरुण
सत्य की अनुभूति
किसी दुसरे द्वारा
नही करवाई जा सकती,
ग्रन्थ, गुरु ये सब छोर तक के ही
साथी हैं,  
पार तो स्वयं ही
जाना पड़ता है
-अरुण     
 

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