सोशल मीडिया पहले भी था
पहले इन्टरनेट का प्रयोग
तो नही पर
सभाओं, बैठकों,
नुक्कड़ या गेट मीटिगों,
एकत्रीकरण के लिए होनेवाली
दैनिक शाखाओं
जैसी सुविधाओं का प्रयोग
होता रहा है.
मैदानों, धार्मिक स्थलों
जैसी जगहों से
धर्मिक,
सांप्रदायिक, समतावादी और ऐसे ही
कई जन-आन्दोलनो से
जुड़े
प्रेरक-विचारों के
प्रचार प्रसार का
काम चलता रहा है,
और आज भी जारी है.
एक मूलभूत अंतर यही
है कि
अब यह कृति घर बैठे
द्रुतगति से और
व्यक्तिगत स्तरपर संभव
हो सकी है.
सदभाव/दुर्भाव, समुदाय-भाव(गर्व),
आलोचना/घृणा या गुस्सा
जगानेवाले
विचारों का प्रचार
प्रसार अब घर बैठे हो रहा है.
जनतंत्र के लिए
यह एक दुमुहा/दुधारी
शस्त्र है.
इसका उपयोग किस तरह
होगा यह
जन-परिपक्वता के स्तरपर
निर्भर करेगा
-अरुण
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