नचे जगत चित माहि
परदे पर छाया नचे, नचे जगत
चित माहि
जात रोशनी दिख पड़े, यह माया
कछु नाहि
-अरुण
सिनेमा में,
रोशनी और छाया के मेल से
परदे पर एक कहानी सजीव हुई
भासित होती है,
ठीक इसीतरह मन के परदे पर
भी
जीवन सजीव हो जाता है
सिनेमा में, रोशनी जाते ही
सिनेमा ओझल हो जाता है और
केवल
कोरा पर्दा दिखाई देता है,
इसी प्रकार
स्मृति प्रकाश से मुक्त
होते ही
माया रहित कोरा जीवन दिखाई
देगा
-अरुण
Comments