जिस प्यार पे इस दिल का कोई हक ही नही था


जिस प्यार पे इस दिल का कोई हक ही नही था
वो प्यार सजाने से भला क्या होगा?
जिस आस के सीने में सितारे ही नही थे
उस आस पे जीने से भला क्या होगा?

जिस साज में ना तर्ज थी बस गरज दबी थी
वो साज बजाने से भला क्या होगा?
जिस दिल में रफाकत नही दौलत की हवस थी
बाँहों में समाने से भला क्या होगा?

जिस रात की तकदीर में बस रात लिखी थी
वो रात हटाने से भला क्या होगा?
गर हांथ की तकदीर में कांटे ही लिखे थे
फूलों पे झुकाने से भला क्या होगा?
- अरुण   

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