किसलय की छावों में छुपकर


किसलय की छावों में छुपकर मेरी बाँहों में आ जाना
दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना

तेरी पूजा के खातिर मै, अंतर में हूँ नव-स्वप्न लिए
तेरा सिंगार रचाने को, प्रेमाश्रु का मै रत्न लिए
बैठा हूँ मै कितने पल से, वो पल पल सार्थक कर देना
दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना

तेरे दर्शन के खातिर अब, इन नयनों में आशाएं हैं
मस्तिक पट पर अब तेरी ही स्मृतियों की रेखाएँ हैं
तुम आज प्रतिक्षा-भूमि पर, क्षण मधुर मिलन के बो देना
दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना

मधुमिलन-पर्व के खातिर अब, सब पर्वों ने धीरज खोया
क्षण क्षण प्रीती ही मेला जब, मेलों से चित्त नही भाया
सब पर्व मानने के खातिर सहजीवन पर्व दिला देना 
दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना

किसलय की छावों में छुपकर मेरी बाँहों में आ जाना
दुनिया की नज़रों से बचकर मेरी नज़रों में आ जाना
-अरुण

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