जब कभी गम का तूफां उभरने लगता है
जब कभी गम का तूफां उभरने लगता है
मै उसे सतहे नगमों पे बसा देता हूँ
मेरी राहें अब उम्मीद भरी राहें हैं
और मंजिलकी तरफ चाह की निगाहें हैं
मै न चाहूँगा मेरा दर्द यहाँ आ जाए
मै उसे फूल ए नगमों से सजा देता हूँ
मेरी रंगीन मुरादों का ये सवेरा है
जमी की हर खुशी और हर हंसी का डेरा है
गर कभी रात मोहब्बत की पास आती है
मै उसे सेज ए नगमों पे सुला देता हूँ
जमीं पे और भी हैं दर्द, वो हटाने हैं
अमन-ओ-दोस्ती के झोपड़े बसाने हैं
जब मेरा दर्द इरादों को चोट देता है
मै उसे दर्द-ए- नगमों में मिला देता हूँ
जब कभी गम का तूफां उभरने लगता है
मै उसे सतहे नगमों पे बसा देता हूँ
-अरुण
Comments