जहाँ यार न हो कोई अपना .....
जीवन के किनारे से जाना है कहीं अब दूर
जहाँ यार न हो कोई अपना, जहाँ प्यार न हो मजबूर
उल्फत के नज़ारे ले
दिनरात बहुत आये
हरबार मोहब्बत पे
छाये गम के साये
अब ऐसा ठिकाना हो, चाहत हो दिल से दूर
जहाँ यार न हो कोई अपना ..........
फूलों की महक का शौक
हर दिल में जगह पाया
गैरों की वफा का फूल
दिल को न किसी भाया
दिल ऐसे जहां में चल, जहाँ लोग न हों मगरूर
जहाँ यार न हो कोई अपना ..........
उम्मीद ही जीने की
हर राह–ओ–सरहद है
रो रो के भी जी लेना
जिसकी भी कुई हद है
आँसू-ओ-हंसी का खेल,जिस जगह नही मंजूर
जहाँ यार न हो कोई अपना ..........
जीवन के किनारे से जाना है कहीं अब दूर
जहाँ यार न हो कोई अपना, जहाँ प्यार न हो मजबूर
-अरुण
Comments