इक थम जाता सब हिल जाते
इक थम जाता सब हिल जाते, ऐसे रिश्तेनाते हैं
फिर भी अपनी अपनी रट ही, क्यों बंदे दुहराते है
कल तक थे तुम गैर पराये, कोई भी नाता ना था
आज अचानक क्या हो बैठा, सुध तेरी हम लेते हैं
तुझको दुख में देख सिहरता, आँखें भी नम होती हैं
वक्त गुजरते, पल दो पल का, जैसे थे हो जाते हैं
लोग यहाँ पर आते जाते, मिलन विरह का खेल यहाँ
लब्ज बदलते रहते किस्से वही पुराने रहते हैं
जिसकी खुलती आँखें उसको कांटे कांटे दिख जाएँ
नींद पड़ी हो आँखों में गर, सपने चुबते रहते हैं
-अरुण
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