अंतिम सत्य तो एक ही.....
दौड़ती रेलगाड़ी का एक डिब्बा
भीतर यात्री चल फिर रहे हैं
डिब्बे के एक छोर से दूसरे छोर के बीच
दोनों तरफ की दीवारों के बीच
उनके चलने-फिरने में भी कोई न कोई गति
लगी हुई है, कोई न कोई दिशा का भास है
कहने का मतलब डिब्बे के भीतर
चलते फिरते लोगों से पूछें तो हर कोई
अपनी भिन्न दिशा और गति की बात करेगा
जबकि सच यह है कि
सभी यात्री दौड़ती रेल की गति और दिशा से बंधे है
उनकी अपनी गति और दिशा
एक भ्रम मात्र है
सभी का अंतिम सत्य तो एक ही है
भले ही हरेक का आभास भिन्न क्यों न हो
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