दृष्टि है, ध्यान नही

आँखें खुली हैं

पर सामने की वस्तु दिखाई नहीं देती

क्योंकि दृष्टि तो है पर ध्यान बटा है

किसी विचार ,तन्द्रा या स्वप्न में

सत्य भीतर, बाहर, चहुँओर व्याप्त है

फिर भी समझ में नही उतरता

क्योंकि समझ उलझी है

भय, चिंता, वासना, आकांक्षा और

कई भले बुरे विषयों में

...................................... अरुण

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