इच्छा-वृक्ष

इच्छाएँ अनेक हैं

एक दूसरे पर निर्भर

एक इच्छा के भीतर से पनपती है

दूसरी इच्छा

फिर दूसरी से तीसरी .......

जिस तरह वृक्ष में शाखाओं से

शाखाएं फूटती है

ठीक उसीतरह

इच्छा-वृक्ष के बीज पर

ध्यान जाते ही वृक्ष हुआ

न-अस्तित्व

इच्छा-वृक्ष की शाखाओं को

जानने का काम है मनोविज्ञान का


पर बीज देख सकता है

केवल आत्म-ज्ञानी

............................... अरुण





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