फिर मन से मौन की ओर

आदमी मौन लेकर

पैदा होता है और

अनायास ही

समाज का संपर्क होते ही

उसमें मन फल उठता है

पर मन से मौन प्रयास करने पर भी

फल नहीं पाता

जो चीज टूट गई

वह जुड सकती है

पर अटूट नहीं हो सकती

द्वैत से अद्वैत फल नहीं सकता

इस बात का जीवंत बोध ही

कि द्वैत शुद्ध भ्रान्ति है

अद्वैत है

.................................... अरुण





Comments

Udan Tashtari said…
बेहतरीन!
इस बात का जीवंत बोध ही
कि द्वैत शुद्ध भ्रान्ति है
अद्वैत है...

सही है ..

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द