सत्य – व्यावहारिक और पारमार्थिक

आकाश में विचरनेवाला पक्षी

धरती और आकाश के भेद को

सही सही देख लेता है

परन्तु वैश्विक अवकाश में

विचरनेवाली प्रज्ञां के लिए

आकाश और धरती जैसी

संज्ञाओं का कोई अस्तित्व

नही बचता

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व्यावहारिक सत्य से

असत्य भिन्न दिखाई देता है

परन्तु पारमार्थिक सत्य के अवतरण से

सत्य-असत्य के आपसी भेद का

कोई औचित्य नही बचता

...................................... अरुण


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