पहले चखें, फिर पढ़ें
बच्चे को पहले अन्न पानी जैसी चीजें
चखने को मिलती हैं
और बादमें वह उनके बाबत कुछ सुनता है,
बाद में, वह उसके ज्ञान का विषय बनती हैं
यानी पहले प्रत्यक्ष अनुभव और बाद में उसपर चर्चा हो
तो चर्चा सार्थक होगी
धर्म की ‘चर्चाओं’ को ही चखने वाले
पंडित बन सकते हैं,, दार्शनिक कहला सकते हैं
जो जीवन में अपने हर अनुभव को
प्रत्यक्ष अपने अवधान से चख रहा हो
वह दार्शनिक न भी हो तो कोई बात नही
क्योंकि वह सही माने में धार्मिक है
................................................. अरुण
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