सम्पूर्णनिष्ठता

विज्ञान वस्तुनिष्ठ है और

कला है व्यक्तिनिष्ठ

रहस्य को जाननेवाला

क्षण क्षण सम्पूर्णनिष्ठ है

जगत में अपने को देखते समय ही

अपने में जगत को देखता रहता है

दृष्टि की व्यापकता ही

उसका स्वभाव है

------

कोई देखे वस्तु को कोई मन की छाय

अपने को देखत रहो देखत जगत सराय

...................................... अरुण


Comments

Udan Tashtari said…
बहुत उम्दा!

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के