मनोवैज्ञानिक गुलामी

अगर रेल के डिब्बे में सीट रिझर्व हो

तो उस सीट पर दूसरे को बैठा देख

अचानक गुस्सा आ जाता है

कारण क्या है?

विश्लेषण दर्शाता है कि -

यह चीज मेरी है

ऐसा आशय जब मन में उभरता है

तब दो में से कोई एक भाव

सक्रीय हो जाता है

एक यह कि

यह चीज मेरे उपयोग के लिए उपलब्ध हुई है

या दूसरा यह कि

इस चीज पर मेरी अपनी मालकी है

पहला भाव तथ्य का परिचायक है तो

दूसरा भाव हमारी मनोवैज्ञानिक गुलामी का

.......................................................... अरुण

Comments

इसी तथ्य को ए ए मैपाश के रुप से पहचानता है।
जब तटस्थ दृष्टिकोण से देखना आ जाता है, तो स्बार्थ, आत्मकेंद्रितता इत्यादि दुर्गुणों से मुक्ति संभव है। ध्यान या निस्वार्थी प्रार्थना से अस्तित्व की इच्छा क्या है यह जानने मे आ जाता है और उसके कार्य को पूर्ण करने के लिये अस्तित्व अपनी अनन्त उर्जाओं को उपलब्ध करा देता है। मेरी उत्पत्ति किसलिये हुयी है और मे कैसे उसका साधन बन जाउं? लेकिन उसमे और मुझमे द्वन्द्व हो तो समाधी साध्य नही हो सकती।

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के