स्मृति को रोग विस्मृति का
बीते क्षणों, दिनों और वर्षों की गठडी
स्मृति के रूप में
बन गई एक सजीव पुतला
हर नूतन क्षण, दिन और वर्ष को
पुरातन बनाती
हर नए जागे को
पुराने में सुलाती और
सोये हुए को ही मौत के पूर्ण विराम तक
ले जाती
लहर को कभी भी सागर न बनने देती
किरण में न सूर्य को उभरने देती
स्मृति की इस गठडी को विस्मरण हुआ
सारे समस्त सकल अस्तित्व का
अपने ही अस्तित्व में डूब जाने के कारण
........................................... अरुण
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