मन है एक आड

प्रकाश के आड़े आने वाली चीज

धरती पर अपनी परछाई बनी देखती है

वह चीज प्रकाश के रास्ते से हट जाए तो

उसकी परछाई लुप्त हो जाती है

अपनी जगह पर खड़े खड़े वह चीज

अपनी परछाई को हटा नहीं सकती, मिटा नहीं सकती

न ही उसे किसी भी तरह गायब कर सकती है

जीवन की सीधी अनुभूति के आड़े खड़ा

मनुष्य का मन

जीवन को अपनी ही

परछाई से ढक देता है

जबतक मन

निर्मन न हो जाए

जीवन प्रकाशमान न हो सकेगा

.................................................. अरुण


Comments

Udan Tashtari said…
बढ़िया!

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