ध्यान के जन्म का रहस्य



अपने और दूसरों के देह-संपर्क
के सहारे मन उभरता है,
मन उभरता है
अपनी सीमाओं के साथ.
सीमाएं केवल लम्बाई-चौड़ाई या ऊंचाई की ही नही,
मन के गहराई की भी.
अवधान (Awareness) तो अखंड और असीम है,
अवधान जब मन की सीमाओं से परे से
मन के सीमित पूर्णत्व को निहारता है,
ध्यान का जन्म होता है
-अरुण
  

Comments

Popular posts from this blog

षड रिपु

मै तो तनहा ही रहा ...