मुक्ती जगे तभी जभी मन-भांडा फूटा



चारों ओर दिवार है,    घर हो अथवा जेल
इक मन से मिलजुल रहे, दुजा न खाये मेल
दुजा न खाये मेल, ‘मेल मनसे’ -  भी झूठा 
मुक्ती जगे तभी,     जभी मन-भांडा फूटा
-अरुण

Comments

Popular posts from this blog

लहरें समन्दर की, लहरें मन की

लफ्जों की कश्तियों से.........

तीन पोस्टस्