आकाश और आँखें



आकाश फैला है दिशाओं में सभी
फिर भी मेरी आँखे
तरकीब से ही देख पाती हैं उसे,
कभी उत्तर, कभी दक्षिण कभी पूरब का टुकड़ा देख लेती हैं.....
और इस तरह जो आकाश
हर पल हर क्षण जिन्दा है पूरा का पूरा,
उसे देख सकने में बहुत ही वक्त लेती हैं
आँखों की मजबूरी पर तरस खाकर
आकाश ने आँखों से कहा -
आओ, वक्त में न अटको न भटको,
अपने असीम सजग अंतर-पटल पर मुझे पूरी तरह फैला लो
और फिर देख लो एक ही पल में मुझे पूरा का पूरा
-अरुण  

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