‘मै’ का भ्रम – एक दृष्टान्त



हवा के झकोले से टहनी हिलती है
पत्ते फड़फडाते हैं
लगता है ‘कोई’ टहनी को
हिला रहा है
ऐसा लगने से ही उस ‘कोई’
का भ्रम जाग उठता है
ठीक इसीतरह विचारों को चलते
देखने पर विचार करते हुए ‘मै’ का
भ्रम जाग उठता है
-अरुण   

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