गुरु किसे कहें ?



अंखियां अन्दर जोड़ दे, वह तेरा गुरु होय
गर अंखियां गुरु से जुडीं, अन्दर का सत खोय
-अरुण
-----
जो कोई भी,
व्यक्ति,वस्तु,घटना या अनुभव,  
दृष्टि को बोध की दिशा में मोड़ देता है
उसी को गुरु कहें,
परन्तु यदि दृष्टि ’गुरु’ में ही अटक जाती है
तो बोध की संभावना समाप्त.
फिर गुरु बोध का साधन न रहकर
मोह की वस्तु बन जाता है
जिन्हें बोध हुआ वे गुरु से मुक्त हुए पर
जिन्हें मोह हुआ वे गुरु-पूजा या गुरु के
गुणगान में आसक्त हुए 
-अरुण    

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के