तबतक परमात्मा कोठडी में कैद ही रहेगा
पसरा विस्तीर्ण आकाश,
ऊँची ऊँची चोटियाँ
अतल गहरे सागर जैसा
परमात्मा
आदमी की क्षुद्र दुनिया
से गुजरते
मानो किसी कोठडी में
कैद हो गया हो ..
अब जब तक आदमी का अवधान
विस्तीर्ण, ऊँचा और
अतल गहरा नहीं होता,
स्वभावतः हमेशा मुक्त
ही है ऐसा परमात्मा,
कोठडी में कैद ही रहेगा
-अरुण
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