जिंदगी धूप ही धूप या छाँव ही छाँव




जिंदगी में धूप भी महसूस होती है और 
छाँव भी और इसीलिए
धूप और छाँव –
इन दो संज्ञाओं की आवश्यकता महसूस हुई,
वास्तव में जिंदगी केवल धूप ही धूप या छाँव ही छाँव है,
यहाँ धूप और छाँव इन दोनों शब्दों का
कोई अस्तित्व नही
---
सारा अंतस्थ और बाह्यजगत एक ही है.
अंतस्थ में, दर्शक और दृश्य एक के एक हैं  
परन्तु दृश्य पर धूप (प्रकाश) फैलने से
दर्शक छाँव जैसा लग रहा है यानि अलग लग रहा है
दर्शक और दृश्य दोनों पर प्रकाश (जागरण) फैले तो
दर्शक -दृश्य की अभिन्नता जाग उठेगी
-अरुण    

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के