निर्बंध छाँव



छाया ऐसी होवे जिसमें
तपन दाह शम जावे  
फिर भी सूरज की किरणों से
प्रकाश छन छन आवे
कोई बंधन नही किसी का
सूरज हो या छाया
सदा खुला हो दर असीम का
हो वास्तव या माया
-अरुण   

Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 20/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
Unknown said…
अप्रतिम! मेरी बधाई आदरणीय!
http://voice-brijesh.blogspot.com

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